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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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दया कीजिए

दया कीजिए

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हे मात! मुझ पर अब तो दया कीजिए,

मन हुआ अशांत, कहीं चैन ना पावै, पल-पल घटती आयु।

सभी गुणों से विहीन मैं मूर्ख, ध्यान मुझ पर दीजिए।।हे मात......


इस जग में मेरा ना कोई ,किससे अब मैं आस लगाऊँ।

मैं सेवक तू मेरी स्वामिनी, चरण- शरण अब दीजिए।।हे मात.....


और कुछ न भाता इस जग में ,मन तुम पर ही रीझे।

याद तुम्हारी जब भी आती, प्रेम रस भर दीजिए।।हे मात.....


मैं मूढ़मति जन्म का पापी, जैसे "दिया" तेल बिन बाती।

तेरे दरस को "नीरज" प्यासा ,अब तो प्रकाशित कीजिए।।हे मात.......



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