द्वंद में फंसा है मन
द्वंद में फंसा है मन
भाव, स्मृति, करुणा, मर्यादा के
द्वंद में फंसा है मन,
जलते दीपक की बाती सा,
संबंध में फंसा है मन।
जी करता कि त्याग के सब कुछ
बैरागी हो जाऊं मैं,
पर जनम जनम के साथ निभाने के
अनुबंध में फंसा है मन।

