दूर से
दूर से
मैंने तुमसे जुड़ी वो छोटी छोटी ख्वाहिशें
समेटना नही चाहती लेकिन अब समेट रही हूँ,
कि तुम मुझे अब अनजाने से लगने लगे हो,
मेरी करीब की पुकार पर भी
तुम मुझसे बहुत दूर जाते दिखाई पड़ते हो
फिर भी मैं अपने अंदर प्रेम की ताल मे मगन
तुमको अपने सबसे करीब समझती हूं,
कहती रहती हूँ, भला मैं तुमसे दूर कब हूँ।
इन दिनों तुम्हारी बाते अहसास दिलाती हैं
कि भले लिखी जाय
कोई कविता किसी प्रतिबिंब पर
लेकिन उसकी पूर्णता जीवन की
वास्तविकता पर रुकती है,
वहीं स्वप्न के रंग चढ़ कर खिलने-पिघलने होते हैं।
लेकिन कभी कभी कानो में
कोई मुझमे जरा बचा कहता है
कि बिना तुम्हारे जीवन मे
कोई हलचल किये तुमसे दबी आवाज में कहूँ,
किसी दिन तुम मुझे फिर से सुनाओ
अपनी वो प्रेम कवितायें जो महकती है कहीं और
एक ख्याल सा है कि
खूश्बू और रंग महसूस किये
जा सकते हैं दूर से भी।

