दूजा जनम
दूजा जनम
कुछ वादे कुछ इरादे
बीच सफ़र में जैसे छूट गए
उस फौजी के यूँ चले जाने से
हर साँस जैसे टूट रही,
अपने और अपनों को कैसे संभालूँगी
ये बात हर बार वो पूछ रही
आँखे खोल एक बार तो समझा दे
ये उस फौजी की बीवी बोल रही,
तुमने किया था जो वादा मुझसे
क्या उसको निभाने फिर आओगे,
ये जनम तो देश के लिए कर दिया
क्या दूजा जनम मेरे लिए दे पाओगे?
सिर्फ यादों की चादर ओढ़
जब जब खुद को सुलाउंगी
एक पल सही पर सपनों में आना
उसी से फिर नयी उम्मीद जगा लूँगी।
