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Surendra kumar singh

Romance

3  

Surendra kumar singh

Romance

दुपट्टे की तरह

दुपट्टे की तरह

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रात के दुपट्टे की तरह

फहराकर उड़ती हुयी शाम

आकाश से आंख दबाकर

निहारता हुआ चाँद।


बादलों की ओट से छिपकर

चाँदनी का रंग उड़ेल रहा है

श्वांसो की तरह

वेलेंटाइन डे

आ रहा है,जा रहा है।


कुछ लोग गुलाब तोड़ रहे हैं

कुछ जमाने की नजर से दूर

एक दूसरे में खोये हुये हैं।


हाथों में हाथ है

आंखों में आंख है

गले से लगे गले हैं

और बाहों में जिस्म है।


धड़कनें हैं दिल की

जैसे कोई वाद्य यंत्र

और ये बेशर्म हवा

गुदगुदा रही है जिस्म।


बन्द आंखों का सपना है पास

बहाना है आज का दिन

नाम जो भी दे लो

इस दिन का

चलो याद आया

प्रेम जो था।


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