दस्तक!
दस्तक!
दिल पर कोई दस्तक सी है,
चौखट कोई क्यों ग़मगी है ?
दर्द ने दिल में आशियाँ किया,
धोके से मिलीं चंद खुशियाँ,
फिरसे उन्हें बेगाना किया,
किसने की ये जुर्रत सी है?
दिल पर कोई दस्तक सी है।
नज़रों में भी नूर नहीं,
खोया झूठा फितूर कहीं,
बरखा सा है इनका बरसना,
वाज़िब सा हो जैसे तरसना,
फिर केसी मायूसी सी है ?
दिल पर कोई दस्तक सी है।
इजाज़त है इस दस्तक को हर,
रहे यहीँ बनाकर इक घर,
महफ़िलो ने मुँह फेरा है,
यहाँ तेरा ही तो बसेरा है,
केसी तेरी हिचकिचाहट सी है ?
दिल पर कोई दस्तक सी है।
दिल को आदत इस आहट की है,
जानी-पहचानी हरकत सी है,
दिल पर कोई दस्तक सी है।