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NOOTAN KUMARI

Others abstract drama

4.6  

NOOTAN KUMARI

Others abstract drama

वक़्त!

वक़्त!

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कहो तो इक सवाल पूछ लूँ?

वक़्त से इसका हाल पूछ लूँ?

सुना है कभी झुकता नहीं,

फिर दीवारों पर क्यूँ लटकता है?

कहता है आज़ाद है सबसे,

क्यूँ बंद घड़ी में घुटता है?

कहता है सब इसके सहारे,

क्यूँ हमारे सहारे थिराकता है?

ऐ वक़्त तमीज नहीं तो सिखले थोड़ी,

रेत सा तू फिसलता है,

सीखले अदब से पेश आना,

टिक टिक दिल तेरा भी धड़कता है,

रहने दे इतना इतराना,

टूटा काँच कहाँ सिमटता है?

चल आज हाथ मिलाते हैं,

गिले शिकवे सारे भुलाते हैं,

साथ साथ जब चलेंगे हम तुम,

देख ज़माना झुकता है,

मुकाम पाए वही मतवाला,

जो वक़्त के साथ संभालता है,

बेकार की है सब कहने की बातें,

ये भला कब रुकता है?

जो बिछड़ गया इन राहों में,

फिर ढूंढे भी न मिलता है।


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