पतझड़
पतझड़
कहीं दूर दरख़तों में
छिपी कोई निशानी है,
मारे ज़िन्दगी के सारे
सबकी यही कहानी है,
अँधेरी रातों के साये
आँखों में क्यूँ पानी है?
किश्तों में क्यूँ जीते सारे?
क्या आहो की रवानी है?
नये घरौंदे ढूंढे सारे,
चौखट वही पुरानी है,
चले चला चल राह में अपनी,
ना तेरा कोई हानी है,
ख़ुशी हमें कभी हाथ लगी ना,
नियति दुःख की दीवानी है,
मायूस है वो राह का राही,
उसे भी कोई ग्लानी है?
दर्द भरा हर शाख का पत्ता,
पतझड़ सी ज़िंदगानी है,
कुछ नहीं है ज़िन्दगी,
एक अधूरी कहानी है।