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Sunil Kumar

Abstract

3  

Sunil Kumar

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दर्पण

दर्पण

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दर्पण में मुखड़ा देख कर 

हर कोई इतराता है 

मन में किसी के क्या है 

ये दर्पण कहां दिखाता है।


जो चाहते हम देखना 

बस वही तो ये दिखाता है

मन के भीतर हमारे

कहां ये झांक पाता है।


सच्ची सुंदरता तो होती है मन की

पर इंसान तन की 

सुंदरता पर इतराता है।


माना दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता

पर दिल की बात भी कहां ये बताता है

दर्पण में मुखड़ा देखकर 

हर कोई इतराता है।



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