दर्ज करो
दर्ज करो
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो
कुछ जलता जो या कुछ बुझता हो
कुछ टूटता हो या कुछ चुभता हो।
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो।
आंखों में चमक की वजह चाहे
गम के आंसू हों या हो खुसी के
जो भी हो दो पल जो रुकता हो
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो।
तमाम मुद्दे हैं जहां में जहन में,
कुछ बोले कुछ चुप है सहन में,
जो भी हो बहसो जो जो होता हो,
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो।
भूखा है प्यासा है कहीं कोई,
कोई सोया है कहीं जागा है कोई,
बताओ हर हाल जो कोई लिखता हो
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो।
दिन डरता नहीं है अब रात से,
कोई चूकता भी नहीं अब घात से,
बनो मुंसिफ जो कहीं नहीं दिखता हो,
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो।
मुल्क सहमे जब आया जरासीम
मगर होना कहाँ किसे मुस्तकीम
ये दौर आगे सिरजोर न होता हो,
दर्ज करो जो कुछ भी दर्ज होता हो।