दर्द
दर्द
दर्द ही अब तो दवा बन गया है
आंसू ही अब तो हवा बन गया है
अब कैसे हंसे हम,कैसे रोये हम,
हंसी से अब तो जख़्म बन गया है
अब न जीते हैं,न ही मरते हैं,हम
टूटे दरख़्तों से छाया लेते हैं हम
साज ही अब पुराना बन गया है
दर्द ही अब तो दवा बन गया है
फिर भी दरिया पार जाना तो है,
पतझड़ में फूल खिलाना तो है,
टूटे हुए किनारों पे चलते रहने से,
मेरा तो अब अफ़साना बन गया है
अब गम की रात नहीं डराती है,
बुझे दीयों से मेरा गाना बन गया है
दर्द ही अब तो दवा बन गया है
ठोकरों से मेरा जीवन बन गया है।