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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

4  

Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

दर्द

दर्द

1 min
440


दिल में ऐसा ...क्या होता है

खून के आंसू क्यों रोता है

निष्ठुरता की चादर ओढ़े,

पैर पसारे जग सोता है ।


प्यार की भाषा कहां खो गई

भावनाएं लाचार हो गई ।

मतलब तक इंसान है सीमित।

हमदर्दी भी कहां सो गई।


नेक दिली थी ...सीखी हमने।

सिर्फ आज तक "अपनों" से ,

चोट लगी तो संभलें ऐसे

जागे जैसे सपनों से।


चोट पे चोट लगी दिल पे

पर रास्ता नहीं बदल पाया।

अपनों ने जो जख्म दिए

उन जख्मों ने दिल बहलाया।


सृष्टि तेरी बुरी नहीं ..पर

कैसी अद्भुत रचना है ।

समझ सके इस "रचना को "...ये

बात किसी के बस ना है ।


शून्य मात्र लगता है मुझको

भीड़ भरे इस मेले में ,

ठहर जाओ कुछ दिन की खातिर ,

खो जाऊंगा रेले में।



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