दर्द तुम्हारे
दर्द तुम्हारे
दर्द तुम्हारे दिए हुए ,
इनको कैसे छोड़ूँ।
शब्द अधरों पर रुके हैं
भाव के आभाव हैं
तन चहकता मोर जैसा
मन में गहरे घाव हैं
धूल बिखरी विरहपन की
जिंदगी वीरान है
भूल पाना तुम्हें अब भी
कहाँ यूँ आसान है।
दुधमुँही मुस्कान लेकर
मन को किधर मोडूँ।
स्वार्थ गढ़ते स्वप्न देखे
कामना मेरी छली
वेदना के स्वर सधे थे
जब चला तेरी गली
स्वप्न व्याकुल से खड़े हैं
दर्द के आगोश में
नेह के अनुबंध टूटे
आ गए हम होश में।
चिर पुरातन प्रेम बंधन
कहो अब कैसे तोड़ूँ।