दर्द लेखिका के
दर्द लेखिका के
मुझे यकीन है
जुस्तजू बन जाउंगी आपका
लेकिन मेरे मरने के बाद....
मेरे अल्फ़ाज़ों को खंगालोगे
उस में मुझे पागलों की तरह तलाशना
पर अफसोस तब में हुंगी और नहीं भी
हर एक पन्ने को सेहलाओगे
मुझे छूने की नाकामयाब कोशिश में
कुछ समझ अधुरी रेह ही जाएगी मेरे बगैर
कभी ठहाके मार कर हंसोगे
कभी दो बुन्द आंसू निकल आएंगे
लेकिन हमेशा मेरा ही पलड़ा भारी रहेगा
ये तो इंसानी फ़ितरत है
तवज्जो तो देते हैं
पर गुज़र जाने के बाद
मेरे साथ मेरी दुनिया देखते तो
सफ़र कुछ हसीन होता
अनोखा और बेहतर बनाने में इमदाद मिल जाती
तब हौसले अर बुलंद होते
रचनाएं सातवें आसमान छूते
कुछ नावाकिफ़ पहलूओं से भी रुबरु होते
रंज तो रहेगा ही
काश ! पहले इन गलियों से गुजरता
कहीं अदबनवाज़ ना बन जाओ, मेरे रुखसत के बाद।