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Akhtar Ali Shah

Tragedy

3  

Akhtar Ali Shah

Tragedy

दर्द की उठी लहर

दर्द की उठी लहर

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दर्द की उठी लहर 

सुबह शाम दोपहर 

कल जो अच्छे खासे थे बीमार बन गए । 

क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए ।।

*****

वक्त था बहार का, बहार लुट गई ।

वक्त था खुशी का खुशी आज मिट गई ।।

सोचा था प्यार से बिताएंगे रात ।

तम के द्वार रोशनी की गोट पिट गई।। 

धूप में झुलस गए 

से फूल की तरह 

हम उदास शाम का श्रंगार बन गए ।

क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए।।

****

बाढ़ में विरह की सभी स्वप्न बह गए । 

दिल के पृष्ठ कोरे के कोरे रह गए ।।

आईना विजय का चूर चूर हो गया ।

वादों के महल बने बनाए ढह गए।।  

यादों के श्याम घन

मन के आकाश में 

जलती हुई सावनी फुहार बन गए। 

क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए ।।

******  

बिजलियां गिरीं तो आशियां जला गईं ।

आँसूओं की धार चैन सब बहा गईं।।

दर्द तो सिसक सिसक के सो गया"अनंत"। 

मौत जिन्दगी के पर करीब आ गई ।।

सोच कुछ सके नहीं 

काल बन गई हवा  

हम तो क्रूर वक्त के शिकार बन गए ।

क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए।।

*****



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