दर्द की उठी लहर
दर्द की उठी लहर
दर्द की उठी लहर
सुबह शाम दोपहर
कल जो अच्छे खासे थे बीमार बन गए ।
क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए ।।
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वक्त था बहार का, बहार लुट गई ।
वक्त था खुशी का खुशी आज मिट गई ।।
सोचा था प्यार से बिताएंगे रात ।
तम के द्वार रोशनी की गोट पिट गई।।
धूप में झुलस गए
से फूल की तरह
हम उदास शाम का श्रंगार बन गए ।
क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए।।
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बाढ़ में विरह की सभी स्वप्न बह गए ।
दिल के पृष्ठ कोरे के कोरे रह गए ।।
आईना विजय का चूर चूर हो गया ।
वादों के महल बने बनाए ढह गए।।
यादों के श्याम घन
मन के आकाश में
जलती हुई सावनी फुहार बन गए।
क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए ।।
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बिजलियां गिरीं तो आशियां जला गईं ।
आँसूओं की धार चैन सब बहा गईं।।
दर्द तो सिसक सिसक के सो गया"अनंत"।
मौत जिन्दगी के पर करीब आ गई ।।
सोच कुछ सके नहीं
काल बन गई हवा
हम तो क्रूर वक्त के शिकार बन गए ।
क्या हुआ जो रेत की दीवार बन गए।।
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