दर्द के पहलुओं में...!
दर्द के पहलुओं में...!
किससे बयां करें,
हम दिल कि दास्ताँ....
कौन समझेगा,
यहाँ दर्द मेरा....
अब तो ज़िन्दगी,
काँटों सी चुभने लगी हैं....
फूलों की महक़ भी,
फ़ीकी-फ़ीकी सी लगने लगी हैं....
इस दर्द के पहलुओं में,
एक पल भी जीना,
दूभर सा हो गया है....
ऐसे वक़्त में ख़ुद को,
कैसे संभाला जा सके,
यही सोच-सोच कर,
आँखें भरी जा रही हैं....
कोई साथी मिल जाये किसी
मोड़ पर,
जो सहारा दे सके डगमगाते इन
पैरों को फ़िर से....!

