दर्द-ए- दिल
दर्द-ए- दिल
सोचो क्या गुजरी होगी
इस नाजुक से दिल पर मेरे
अश्कों में बीत रही जाने
कितनी अनगिनत रातें मेरी
तुम तो रोशन चिरागों को
बस रह रहकर बुझाते गए
हमें यूँ अकेला छोड़कर
मझधार में तुम मुस्कुराते गए
दर्द तुमने इतना दिया कि
अब दर्द-ए-दिल बन गया,
तुम तो हाल-ए-दिल सुनकर भी
यूँ अनजान से बनते गए,
जाने कब कहाँ जाकर थमेगा
दर्द-ए-दिल दिल मेरा
जिंदगी की मिठास में
तुम इतनी कड़वाहट घोलते गए।