द्रौपदी का संताप-३/४
द्रौपदी का संताप-३/४
द्रौपदी अब और मौन ना रहेगी,
संताप सारा अनवरत वो संसार से कहेगी।
हे महाबली कह दो कि वो पुत्र तुम्हारा नहीं,
क्या पिता कहकर उसने तुम्हें पुकारा नहीं,
क्यों छोड़ा मेरे पुत्र को चक्रव्यूह में वहीं
क्या तुम्हारी वीरता ने तुम्हें धिक्कारा नहीं।
हे पार्थ कहां था तब तुम्हारा प्रताप,
द्रौपदी कर रही थी जब करुण विलाप,
सुन दुशासन का वह अनर्गल प्रलाप,
बोलो कहां थे हे आर्य शूरवीर आप।
बोलो माद्री कुमार क्यों किया नहीं प्रयास,
अरि जब बना रहा था उसे काल का ग्रास,
क्यों मूक थे सुन कर वो कुटिल अट्टहास,
अरे! कुछ कर लेते तुम दोनों भ्राता काश।
देख उत्तरा को मन द्रौपदी का भर आया था,
क्या यही थी वो जिसको पुत्र वर के लाया था,
क्लांत मलिन हो मुख कमल वो कुम्हलाया था,
आज कैसा अमंगल दुर्दिन उस पर छाया था।