दोस्ती
दोस्ती
ग़ज़ल
उम्रभर के लिए अजनबी हो गये!
हम जुदा जीवन भर ऐसे की हो गये
मैं देखूँ चैन उसको नहीं मिलता है
वो मेरे दिल के ही दिलकशी हो गये
बजते है साज उल्फ़त के दिल में जिसके
वो लबों की मेरे मौसिक़ी हो गये
देखकर चढ़ता जिसकों नशा पीने को
जीस्त की मेरी वो मयकशी हो गये
चाहता हूँ बने वो मेरा हम सफ़र
रोज़ जिसके लिए बेकली हो गये
हमसफ़र तो नहीं बन सके आज़म के
वो ग़ज़ल मेरी अब शाइरी हो गये।
आज़म नैय्यर