" दोस्ती संभाल के "
" दोस्ती संभाल के "
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !
एक दूजे को समझ ना पाए, फिर कैसी यह चाह जगी ?
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !
एक दूजे को समझ ना पाए, फिर कैसी यह चाह जगी ?
दो प्यार के शब्द ना बोल सके, ना उनके दिल को जान सके !
उनकी चाहत की परवाह नहीं, उनकी व्यथा को ना पहचान सके !!
कभी अनुदानों को बतलाकर के लोगों से ही इसकी मांग हुयी !
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !!
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !
एक दूजे को समझ ना पाए, फिर कैसी यह चाह जगी ?
जब याचक ही सिर्फ बनना था, तो मित्र बनना बहना था !
दिल जोड़ने की बात कहाँ? यह तोड़ने का ही निशाना था !!
शिष्टाचार को भूल -भाल कर अशिष्टता की ही बात हुयी !
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !!
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !
एक दूजे को समझ ना पाए, फिर कैसी यह चाह जगी ?
हमने ना कभी उनको देखा, सिर्फ तस्वीरों में उनको परखा !
धीरे -धीरे बातों के क्रम में चल कर, लोगों के दिल में उतरना सीखा !!
अपना परिचय छोड़ छोड़कर, लोगों की तहकीकात हुयी !
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !!
अभी -अभी तो दोस्त बने हो, ना परिचय ना कुछ बात हुयी !
एक दूजे को समझ ना पाए, फिर कैसी यह चाह जगी ?