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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

दोस्त बनकर

दोस्त बनकर

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धोखा देते है लोग दोस्त बनकर

जान लेते है लोग दोस्त बनकर

किन पे यकीन करें अब साखी,

दगा देते है लोग दोस्त बनकर


ये पवित्र शब्द दोस्ती बदनाम है

आंखों में धूल झोंकना आम है

शूल देते है लोग दोस्त बनकर

धोखा देते है लोग दोस्त बनकर

शीशे के ख्वाबों पर यहाँ साखी,

पत्थर फेंकते है लोग दोस्त बनकर


पहले ले जाते है, दरिया के पास

फिर डूबो देते है, सुनामी बनकर

धोखा देते है लोग दोस्त बनकर

फिर भी कोई तो यहाँ कृष्ण होगा,

इसलिये जी रहे है, सुदामा बनकर


बड़ी शिद्दत से हम तलाश रहे है,

पलकों के आंसुओं को छांट रहे है,

फिर भी यहां कोई नहीं आ रहा है,

कुरुक्षेत्र में मेरा मित्र कर्ण बनकर

धोखा देते है लोग दोस्त बनकर

ठोकर देते है लोग दोस्त बनकर


फिर भी भीतर से कमल खिलाएंगे

अपना सारथी ख़ुद कृष्ण बनाएंगे

जीवन के भंवर से हम निकल रहे है,

ख़ुद की लहरों से अभिमन्यु बनकर



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