दोनों
दोनों
पुरुष रोता नहीं,
पुरुष लिख लेता है।
स्त्री रो लेती है,
लिख भी लेती है।
स्त्री के आंसुओं में शब्द होते हैं।
और, पुरुष शब्दों की कमी के साथ जीता है।
स्त्री के शब्द बह जाते हैं।
पुरुष के गुबार के शब्दों की कोई भाषा नहीं, लिपि नहीं।
दोनों भावबद्ध हैं।
एक के पास लगातार भावनाएं हैं,
दूसरे के पास कठोरता।
कठोर जल्दी टूट जाता है,
खत्म हो जाता है।
कठोरता का अस्तित्व हमेशा लचीलेपन से कम होता है।
इसलिए पुरुष को सीख लेना चाहिए, स्त्री से, स्त्री सा रोना।
लेकिन, हो रहा है उल्टा,
अब
स्त्री पुरुष दोनों कठोर हैं।
स्वार्थ जो द्विआयामी हो चुका है।