उत्कंठा
उत्कंठा
उत्कंठाओं के बीज उगते हैं जिस अदृश्य मन से, वही मन कह रहा है कि क्यों न हर उत्कंठा में - हर एक की उत्कंठा में, समा जाऊं मैं। तुम साथ दोगे मेरा?तो फिर काट दो हाथ मेरे, जोड़ दो हल में किसी ताकि वे पकड़ लें हाथ खेत जोतने वाले के। काट दो तुम पैर मेरे, लगा दो किसी सिलाई मशीन पे, उन पैरों पे तलवे रख, सिल सकें किसी नग्न के लिए वस्त्र। काट भी दो जुबान मेरी बहुत से हिस्सों में... दे दो नव-पंछियों को, कलरव प्रकृति का चलता रहे अनवरत। काट के कंधों को मेरे, उसे जोड़ देना उन तकियों से, जिन में मुंह घुसा के रहा हो कोई फफक। छील के चमड़ी मेरी, बना देना पैबंद, उन फटे तम्बूओं पे, जिनमें कांप रहे हों हाड़ किसी के। निकाल लेना दिमाग मेरा बहुत सावधानी से, और उछाल देना उसे आसमान में। शौक उसका भी हो जाए पूरा। आ जाए समझ उसमें कि उछलने वाले आसमान में टपकते हैं धरती पे ज़ोर से। हाँ! दिल मेरा निकाल के उसे अपने पास ही रख लेना, मेरे हर अंग की धड़कन तुम्हें यही सुनाता रहेगा। कुछ क्षण रोक लेना खुद को, मेरी आँखों को छोड़ देना, मुझे कुछ न से कुछ करते देख, उसे बहा लेने दोदो आँसू खुशी के। फिर उन्हें दे आना किसी भी देश के राजा को, वो चाहे तो कर ले दृष्टि सम्यक, चाहे तो मेरी आँखों को दिखा दे - अपनी आँखें। -
