दोनों तरफ है प्रेम-विछोह
दोनों तरफ है प्रेम-विछोह
तुम्हारी याद आती है,
मुझे रह रह सताती है !
करूँ क्या तू बता दे,
मेरी तो जान जाती है !
मुझे तुमसे ही नाता है,
नहीं कुछ मुझको भाता है !
तड़पता हूँ तुम्हारे बिन,
मुझे नहीं चैन आता है !
सब दिन मैं सँवरती हूँ,
नव-नव शृंगार करती हूँ !
तुम्हारी ही प्रतीक्षा में,
मैं दिन रात तड़पती हूँ !
हमारी तड़प ही ऐसी है,
सुलगती आग जैसी है !
ना बुझती है अकेले ही,
ये तो दावाग्नि जैसी है !
अब तो नहीं मैं रह सकूँगी,
विछोह को ना सह सकूँगी !
आप जो अब फिर न आए,
प्राण को मैं अपनी तजूँगी !
धैर्य रख लों हम मिलेंगे,
प्रेम को मिटने ना देंगे !
मिलन तो होगा हमारा,
प्रेम -पुष्प खिलते रहेंगे।

