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AKIB JAVED

Tragedy

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AKIB JAVED

Tragedy

दोहे- कृषक

दोहे- कृषक

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कृषक यही सोचे खड़ा, कितना था मशगूल।

फसलें बोकर अब लगे, कर बैठा वो भूल।।


सूरज के इस ताप को, मौसम देता मात।

आई  है  ठंडक लिए, प्यारी सी बरसात।।


महक रही है हर दिशा, कृषक बो रहे धान।

देकर अनाज देश को, भूखा रहे किसान।।


विकास क्रम में वन कटे, धरती उगले आग।

जल ख़ातिर अब सब लड़ें, नहीं सकोगे भाग।।


रासायन अब अन्न में, हर  घर  में बीमार।

मानवता  धूमिल  हुई,  लालच हुई सवार।।



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