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wasif khan

Romance

2  

wasif khan

Romance

दो लफ्ज़

दो लफ्ज़

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बहुत बेचैन, बदमिज़ाज, उखड़ा

उखड़ा सा रहता है,

देखो दो लफ़्ज़ बात कर सको तो

शायद बीमार को सुकून मिल जाए।


ज़्यादा कुछ न कहना बस उसका

हाल पूछ लेना,

शायद रागों में फिर खून आ जाए।


अपनी दास्तान-इ-इश्क़ सुनाया

करता था वो सबको,

पर हर रोज़ एक ही अधूरी कहानी।


रोता हँसता, गाता, चिल्लाता कुछ

ऐसे अपने दर्द बयां करता

सुनो, वो तुम्हें बहुत याद करता है।


जा के दो पल को मिल लो शायद

रूह को इत्मिनान आ जाए।


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