wasif khan

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5.0  

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तारे

तारे

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बेरंग सी ज़िन्दगी दबी ज़िम्मेदारियों तले,

थक के बस सो जाना चाहता हूँ खुले

आसमान तले,

क्या ख़ूब तो चमकते है तारे भी,


ज़रूरी तो नहीं हर तारा चाँद बने,

सो जा गहरी नींद में ऐ ग़ाफ़िल,

चल किसी ख़ूबसूरत सपने में चले,

आसान नहीं है ये बुलंदी,

न जाने इसके लिए कितनों के है सपने जले।


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