wasif khan

Abstract Inspirational

4.9  

wasif khan

Abstract Inspirational

मैं तेरा ही तो चहरा हूँ

मैं तेरा ही तो चहरा हूँ

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कभी सूर्य सा तपता हूँ

कभी बर्फ सा अकड़ता हूँ


मैं समंदर सा गहरा हूँ

मैं आसमान का राजा हूँ


कभी खुद से मैं लड़ता हूँ

कभी खुद ही से मै हारता हूँ


कभी खुद मे बिखरता हूँ

हर बार टूट कर

पत्थर मै होता हूँ


फिर किसी मुस्कान पर

मोम सा पिघता हूँ


इस कठोर सी दुनिया में

एक मुसकान लिए ठहरा हूँ


कया गम जो मैं अकेला हूँ

मैं इस अँधेरी रात का नया सवेरा हूँ


मैं स्याह आसमान का टूटता तारा हूँ

मैं तेरा ही तो चेहरा हूँ।


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