wasif khan

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4.7  

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प्यारी सी

प्यारी सी

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फ़िज़ाओं में आज कुछ ठंड सी है

आँखें भी आज कुछ नम सी है

तेरे चले जाने की ख़ामोशी सी है

अब तो रातें भी कुछ स्याह सी है

लिहाज़ा मै ये बात बख़ूबी जनता हूँ की

अब हमारे बीच दूरी कुछ ज़्यादा सी है

अब तो अरसा हुआ तुझे जा कर,

मगर तेरी यादें अब भी कुछ ताज़ा सी है।


अब फ़क़त मेरे लिए मर चुकी है तू,

लेकिन नजाने क्यों मेरे दिल में तू अब भी ज़िंदा सी है

चीखना चाहता हूँ चिल्लाना चाहता हूँ

लेकिन लबों पे फिर भी नर्मी सी है

आज भी अगर कोई मुझसे पूछता है की कैसी है तू

तो अनजाने में बोल पड़ता हूँ 'बहुत प्यारी सी है'।


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