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Salil Saroj

Drama

1.7  

Salil Saroj

Drama

दो ग़ज़ ज़मीन है बहुत

दो ग़ज़ ज़मीन है बहुत

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इस कागज़ी बदन को यकीन है बहुत

दफ्न होने को दो ग़ज़ ज़मीन है बहुत।


तुम इंसान हो, तुम चल दोगे यहाँ से

पर लाशों पर रहने वाले मकीं हैं बहुत।


भरोसा तोड़ना कोई कानूनन जुर्म नहीं

इंसानियत कहती है ये संगीन है बहुत।


झुग्गी-झोपड़ियों के पैबन्द हैं बहुत लेकिन

रईसों की दिल्ली अब भी रंगीन है बहुत।


वो बरगद बूढ़ा था, किसी के काम का नहीं

पर उसके गिरने से गाँव ग़मगीन है बहुत।


बस एक हमें ही खबर नहीं होती है

वरना ये देश विकास में लीन है बहुत।


*मकीं- मकाँ में रहने वाला



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