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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Tragedy

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Tragedy

हमारा मुस्तकबिल

हमारा मुस्तकबिल

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हम-दोनों

रोज ही रोते हैं

अपनी किस्मत को

कोसते हैं रोज ही

अपने नसीब को

इस भीड़ भरी दुनिया में

हमारा अपना नहीं कोई

कहने को नाते हैं बहुत

रिश्तों की फुलवारी में


लेकिन मैं ऐसा फूल हूँ

जो न देवताओं को कबूल है

न जनाज़ों को कबूल।

ख़िज़ाओं का मौसम

दिन रात सुबह-शाम

ज़िन्दगी में रहता है

बहार बन कर।

क़दम दर क़दम

ख्वाहिशों के गलियारों में

जीवन के दरवाजे पर

ख़ुशियों की आमद से पहले

ग़म दबे पाँव दस्तक दे जाता है।


ग़म भी जलता है

हमारी ख़ुशी से

शिकायत बहुत है

हमें इस ज़िन्दगी से

चाहा जो, वो पाया ही नहीं

जो मिला वो संभाल न सके

अब तो नहीं उम्मीद भी

कि सँवरेगा हमारा वर्तमान

और भविष्य भी

जीते हैं सुबह शाम

अतीत के साये में

करते हैं याद

सुनहरे अतीत को

शायद ये अतीत ही

सबब है हमारे जीने का

ये दर्द ओ ग़म ही

मुस्तकबिल है हमारा।



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