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Salil Saroj

Abstract

4  

Salil Saroj

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मत समझो कि ये घना कोहरा है

मत समझो कि ये घना कोहरा है

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मत समझो कि ये घना कोहरा है

तुम्हारे ख्व्वाबों पे सख़्त पहरा है


जो दोस्त हैं, वही दुश्मन तो नहीं

सियासत का राज़ बहुत गहरा है


खेल तो कोई और ही खेल रहा है

किसान बस अदना सा मोहरा है


फकीरी की हद नहीं है तो और क्या

लोकतंत्र गरीबों की लाश पे ठहरा है


चीखों से अब सत्ता नहीं हिला करते

कहने वाला गूँगा,सुनने वाला बहरा है


कैसे पहचान पाओगे इस गफलत में

आखिर सच का कहाँ अपना चेहरा है


मत समझो कि ये घना कोहरा है

तुम्हारे ख्व्वाबों पे सख़्त पहरा है


जो दोस्त हैं, वही दुश्मन तो नहीं

सियासत का राज़ बहुत गहरा है


खेल तो कोई और ही खेल रहा है

किसान बस अदना सा मोहरा है


फकीरी की हद नहीं है तो और क्या

लोकतंत्र गरीबों की लाश पे ठहरा है


चीखों से अब सत्ता नहीं हिला करते

कहने वाला गूँगा,सुनने वाला बहरा है


कैसे पहचान पाओगे इस गफलत में

आखिर सच का कहाँ अपना चेहरा है।


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