दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए !
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए !
💔 दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए 💔
बीते लम्हों का सूनापन
तेरी यादों का महकता चंदन
आँखों में थमी तेरी परछाई,
रोशनी बनकर बूंदों में घुल जाए ।
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए |
कहां मुमकिन है मोहब्बत को
लफ्ज़ों में बयां कर पाना ।
आसान नहीं भुला, यादें
सुकून की नींद में सो जाना ।
ज़िस्म से रूह तलक, बस सुकून छा जाए ।
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए |
जीवन के पावन 'निर्झर' को,
तुम यूँ ही बह जाने दो ।
एक पल, बस एक पल,
नीले अँधेरे में गुम हो जाने दो ।
तारों की चादर ओढ़,
चाँद की रोशनी में खो जाऊं ।
तेरी मोहब्बत की खुशबू में,
खुद को फिर से पा जाऊं ।
ज़िस्म से रूह तलक, बस सुकून छा जाए ।
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए |
तेरे बिना सारा जहाँ, सूना सा लगता है,
जैसे एक सिसकी.…
जैसे एक सिसकी ।
ये कैसा अधूरापन ?
ये कैसा सूनापन ?
शायद यही है इश्क़ अपना…
एक मीठा सा पागलपन ।
हर खुशी बेमानी, हर नशा अधूरा,
तेरे बिन ये जीवन, एक ख़्वाब ना पूरा ।
तुझसे ही शुरू, तुझपे ही फ़ना,
तेरे बिना अब नहीं , कहीं ठिकाना ।
ज़िस्म से रूह तलक, बस सुकून छा जाए,
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए ।
ये रात ठहर जाए, पलकों पे ठहर जाए ।
होठों पे तेरा नाम हो, और सुबह ना आए ।
हर ख्वाहिश मिट जाए, बस तू ही तू रह जाए ।
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए |
ज़िस्म से रूह तलक, बस सुकून छा जाए ।
दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए ।
~ बाल कृष्ण मिश्रा
मोबाइल : 8700462852

