“ सन्नाटा ”
“ सन्नाटा ”
सूरज छुपा धुँध के पीछे,
आँखों में ठहरा आसमान।
इस अकेलेपन की रात में,
दिल ढूँढ रहा तेरे निशाँ।
शहर सो गया, नींद के आगोश में,
मेरा जहाँ बस तेरी यादों में सिमटा।
चीख़ रहा अंदर सन्नाटा,
बाहर का मौसम बदला।
हर साँस में बस तेरी खुशबू ,
हर धड़कन पे तेरा पहरा।
सन्नाटों में तेरा साया,
नींद के आगोश में,
शहर समाया ।।
धुंधले हुए हैं रास्ते सारे,
कैसे ढूँढूँ मैं अपनी डगर ?
खो गए हैं सारे सहारे,
कहाँ ले जाएगा यह सफ़र ?
ख़ामोशी ने शोर मचाया,
दिल ने फिर खुद से की उलझन।
टूटे सपनों की राख तले,
दबी हुई है मेरी चुभन।
क्यों थम न जाता ये जीवन,
थक-सा गया हर एक क्षण।
चाँद भी आज बादलों का,
ओढ़कर आया है कफ़न।
~ बाल कृष्ण मिश्रा,
नई दिल्ली |
