दिव्यांग
दिव्यांग
जीने के लिए संघर्षरत हूं,
किस्मत का मारा, शरीर है अधूरा,
तकलीफ क्या चीज कैसे समझाऊं,
दिव्यांग हूं मैं अंग नहीं पूरा !!
भगवान ने हम सब को बनाया,
फिर क्यों अंतर इतना,
पैरालंपिक में स्वर्ण जीत के भी,
न होती हमारे संवर्धन !!
दर्द की सागर है इस दिल में,
पीड़ा का लहर सदा रहेगा,
मेरे लाचारी पर आज जो हँस रहा है,
कल उस पर भी कोई और हँसेगा !!