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दिल्ली की सड़कों पे

दिल्ली की सड़कों पे

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दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों पे

गाड़ियाँ आती हैं-जाती हैं

लाल बत्ती जलते ही रुकती हैं।


एक किशोर

आयु पंद्रह-सोलह साल

कूदता है-फाँदता है

टोपी हवाँ में लहराकर

छलांगे लगाता है।


पर टोपी गिरने नहीं देता

स्टिअरींग व्हील संभालते हाथ

बजा नहीं सकते तालियाँ।


फिर भी उसकी दाद दिये बिना

रह नहीं सकते

बस बीस सेकण्ड का करतब

और ढेर सारी वाहीवाही।


हरी बत्ती जलने में थोडी देर बाकी

तीन चार मासूम लड़कियाँ

शायद उसकी बहनें हो

गाड़ियों के शीशे खटखटाती।


हाथ फैलाये हुए खड़ी रहती है

लोग परेशान

वह बिन बजायी तालियों की गूँज

काफूर हो जाती है पल भर में।


कुछ चंद सिक्के

रखे जाते हैं नन्हीं कलियों के हाथों में

पता नहीं ये भीख होती हैं

या करतबों का ईनाम।


गाड़ियाँ आती हैं और जाती हैं

हवा में कलाबाजियों का दौर

बदस्तूर जारी रहता है

पेट के वास्ते।।


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