शहर
शहर
देखते देखते कैसे बदलता गया शहर
नशे में अपनों से दूर होता गया शहर
मेरी जीने की ख़्वाहिश थी थोड़ी,
बस मैंने जिंदगी माँगी थी थोड़ी,
बेरहमी से ज़ालिम मुझको देता गया जहर
नशे में अपनों से दूर होता गया शहर
कितनी बेबसी में यहाँ जी रहे हैं लोग,
बस रहम की गुहार लगा रहे हैं लोग,
ये बेरहम सितमगर ढाता गया कहर
नशे में अपनों से दूर होता गया शहर
निलाम किये खुद को जी रहा ग़रीब,
अपने ही आँसूओं को पी रहा ग़रीब,
अमीरों पे दौलत की करता गया मेहर
नशे में अपनों से दूर होता गया शहर