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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

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Ratna Kaul Bhardwaj

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दिलबर मिला नहीं

दिलबर मिला नहीं

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घर मिले, गुल गुलिस्तां मिले पर

अब तक कोई रहबर नहीं मिला

जिसकी चाह में शमा जलाये बैठे है

अभी तक वह दिलबर नहीं मिला


पूछते रहे गुज़रते वीरान रास्तों से 

रुक रुक कर उसका पता ठिकाना

दिन बदले, बदलती गई रातें, पर

वह मील का पत्थर नहीं मिला


छुप जाते दूर लोगों की नज़रों से

फिर एक बार खुद को तलाशने

जहां तक नज़र गई सिर्फ भीड़ दिखी

सुस्ताने को एक कारागार नहीं मिला


दिल बेकरार था मेरा, किसी ने देखा नहीं

लोग मिलते गए, और फिर भूलते गए

ख्वाहिश थी दिल उड़ेल दे कोई

बदकिस्मती, कोई खुलकर नहीं मिला


न जाने वह सितमगर कहाँ रह गया

रात दिन जिसके खयालों में खोए रहे

अब तो फकीरी रास आने लगी है

इश्क़ में चैन कभी पल भर नहीं मिला.....



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