दुर्गम राहों से गिरते संभलते मैं बह निकली दुर्गम राहों से गिरते संभलते मैं बह निकली
लेने नहीं कुछ देने आती, फिर से मुस्कान दिलाने आई बेटियाँ। लेने नहीं कुछ देने आती, फिर से मुस्कान दिलाने आई बेटियाँ।
तुम तो खो ही गये थे इस सफर में कहीं मैंने अंत तक तुमको तलाशने की बात की तुम तो खो ही गये थे इस सफर में कहीं मैंने अंत तक तुमको तलाशने की बात की
छुप जाते दूर लोगों की नज़रों से फिर एक बार खुद को तलाशने छुप जाते दूर लोगों की नज़रों से फिर एक बार खुद को तलाशने