पीहर में बेटियां
पीहर में बेटियां
बचपन की अपनी याद सँजोये, पीहर में फिर से आई बेटियाँ
तलाशने अपनी स्नेह जड़ों को, अपनों से मिलने आई बेटियाँ।।
पल में पराई हो जाती, अस्तित्व पूछने आई बेटियाँ
लेने नहीं कुछ देने आती, फिर से मुस्कान दिलाने आई बेटियाँ।।
नजर ना लग जाए रिश्ते को अपनों की, बांधने ताबीज प्रेम का आई बेटियाँ
नम आँखें झर-झर बहती, दुख-दर्द को सुनने-सुनाने आई बेटियाँ।।
बुझ चुका जो स्नेह का दीपक, उसे फिर से जलाने आई बेटियाँ
जिस आँगन में बचपन बिता, उसे सजाने आई बेटियाँ।।
प्रेम, समर्पण, त्याग की मूर्ति, मात-पिता की तकलीफ को लेने आई बेटियाँ
बना रहे प्रेम हमेशा रिश्ते नातों, सुने घर को खुशियों से भरने आई बेटियाँ।।