दिल से चाहा होगा किसी ने ..
दिल से चाहा होगा किसी ने ..
दिल से चाहा होगा किसी ने ,
तब कहीं जा कर यह दीवार टूटी है ..
एक तिनका भी बचा नहीं पाया मै ,
उसने बड़ी फुरसत से यह दुकान लूटी है ..
जब शहर छोड़ने का इरादा बनाकर निकला था घर से ,
ऐसा कोई नहीं दिखा वहां जिसकी शक्ल ज़रा सी भी उतरी है ..
मेरे जाने का ना किसी को अफ़सोस था और ना ही गम ,
इस बड़े-से शहर से ऐसी बहुत सी बातें सीखी है ..
गांव से कोई पहली बार आ रहा था इस शहर में ,
शायद स्टेशन पर उसने सपने दिखाने वाली किताबें पढ़ी है ..
और एक उधर गांव लौटने वाले राहगीर परेशान थे की ,
चलती क्यों नही है ये रेल एक स्टेशन पर कब से खड़ी है ..
आखिर कोई बगैर टिकट ही चढ़ गया रेल में ,
और 'मेरी' किसी के इंतजार में छूटी है ..
लौट कर जाता भी तो क्या मुंह दिखाता अपनों को ,
शहर जाने की ज़िद में लोगों की खरी-खोटी भी तो सुनी है ..