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Sandeep Kumar

Classics

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Sandeep Kumar

Classics

दिल को छू जाती है

दिल को छू जाती है

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क्यों आंखों में उसकी तपन सी लगती है

क्यों दिल में उसकी ज्वलन सी लगती हैं।


हँसती है बोलती है जज्बातों से खेलती है

नखरे वाली ‌कभी भी अदप से डोलती है।


क्यों भीगी-भीगी पलकें यूँ ही खोलती है

क्यों बेदर्द-दर्द जुबां से धीरे-धीरे बोलती है। 


सर झुकाती नयन चुराती मटक मटक आती है

हँसती बोलती और डोलती दिल को छू जाती है।


कभी जवानी रास कहानी कह क्या शर्माती है

बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बोलते दिल की राग सुनाती है।


भोली भाली राजकुमारी रास क्या आती है

मन तम बुद्धि कौशल से दिल जीत जाती है।


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