दिल की दौलत
दिल की दौलत
धन दौलत, शोहरत इज्ज़त
स्नेह धर्म और प्यार मोहब्बत।
भौतिकता की चकाचौंध में
पैसा बना ईमान धरम
और अर्थहीन हुई दिल की दौलत।।
रूपया और डालर बहुत कमाया
खातिर इनकी अपनों को रुलाया।
अंबार लगाया धन वैभव का
पर अंत समय कुछ काम न आया।।
चवन्नी की चमक को जब से
डाॅलर का है साथ मिला।
मन के शहंशाह को तब से
धन के सौदागर ने छिपा लिया।।
दो मीटर के कफन की खातिर
जीवन सारा वार दिया।
सुख और ऐश्वर्य की लालच में
मन का चैन बिसार दिया।।
बुलन्दियों पर रहा सितारा
वक्त के तुम बन गये सिकंदर।
तुम बैठ शिखर, गम भूले सारा
पर कोलाहल था मन के अंदर।।
कुछ न साथ में लाये थे
न साथ में ही कुछ जायेगा।
जीवन भर यह समझ न पाये
बस अंत समय पछतायेगा।।
जो चाहा था वो सब पाया
रिश्ते नाते सब बिसराया।
रुपया पैसा बहुत कमाया
अंत समय कुछ काम न आया।।
दिल और दिमाग की उहापोह में
हरदम जीती निज स्वार्थ की फितरत।।
यों बैठे मुँह लटकाए करते हो अब क्यों गिला।
जिस मुकाम की चाहत में थे तुम्हें वही अंजाम मिला।।