Amandeep Singh
Tragedy
दिल खुदा से यूँ तुझे क्यों माँगता है
और भी तो है हसीं जब जानता है
इस इश्क़ के मर्ज़ से बेज़ार है दिल
हाँ यही सच है अमन ये मानता है
मैं
रात
कुछ नहीं है
रोटी मेरे बिन...
ज़िंदगी - ग़ज़ल
खत
दिल खुदा से
पश्चिम की करके नकल,बिखर रहे परिवार। पश्चिम की करके नकल,बिखर रहे परिवार।
चैन-सुकूं छीन कर मेरा बढ़ा कर दर्द-ए-सर मेरा चैन-सुकूं छीन कर मेरा बढ़ा कर दर्द-ए-सर मेरा
काँट दिये फिर पंख मेरे अपने अहम के चलते। काँट दिये फिर पंख मेरे अपने अहम के चलते।
कब वह सब ज़िंदगी के वहम सपने कब बन गए पता ही नहीं चला। कब वह सब ज़िंदगी के वहम सपने कब बन गए पता ही नहीं चला।
सोचती हूं तारूफ क्यों किया तुमसे हमने इनकी तरह, हमको भी तो राह में छोड़ा तुमने सोचती हूं तारूफ क्यों किया तुमसे हमने इनकी तरह, हमको भी तो राह में छोड़ा तुमन...
आज भी बेटा और बेटी में भेदभाव है, बेटा आज भी बेटी से बहुत ज़रूरी है। आज भी बेटा और बेटी में भेदभाव है, बेटा आज भी बेटी से बहुत ज़रूरी है।
किसका क्या है इरादा मैं ये कैसे कहूं किसका क्या है इरादा मैं ये कैसे कहूं
जैसे हम वैसे ही हमारी परछाई होती हैं। जैसे हम वैसे ही हमारी परछाई होती हैं।
ख्यालों की कुहस, कुछ बिसरी यादों की धुंध पोंछकर। ख्यालों की कुहस, कुछ बिसरी यादों की धुंध पोंछकर।
शायद मेरा मैं भी नहीं रहा, खो चुकी हूं अपना वजूद, शायद मेरा मैं भी नहीं रहा, खो चुकी हूं अपना वजूद,
हम आज भी खड़े हैं उसी मोड़ पर जहां तुम गए थे छोड़कर। हम आज भी खड़े हैं उसी मोड़ पर जहां तुम गए थे छोड़कर।
तो फिर क्यों वृद्धा आश्रम में माताएं बन चुकी पराई है..? तो फिर क्यों वृद्धा आश्रम में माताएं बन चुकी पराई है..?
विरह से ज़लता है तन मेरा,तेरा सिवा कोई नहीं है मेरा। विरह से ज़लता है तन मेरा,तेरा सिवा कोई नहीं है मेरा।
गिला नहीं, जो ख़्याल में ज़िंदा हैं। गिला नहीं, जो ख़्याल में ज़िंदा हैं।
जिधर देखता हूं बस तुम हो जिधर देखता हूं बस तुम हो
"मुरली" ईन्तजार कर रहा हुं मै तेरा, इस जुबान पर रहे गया है नाम तेरा। "मुरली" ईन्तजार कर रहा हुं मै तेरा, इस जुबान पर रहे गया है नाम तेरा।
आँखों के आगे साथ बिताए लम्हों की रील आ गई आँखों के आगे साथ बिताए लम्हों की रील आ गई
ऐसा लग रहा था की हमारे नहीं अमीरों के भगवान रहते हो। ऐसा लग रहा था की हमारे नहीं अमीरों के भगवान रहते हो।