ज़िंदगी - ग़ज़ल
ज़िंदगी - ग़ज़ल
कल ज़िंदगी ने है बुलाया कुछ दिखाने के लिए
चल देखते है यार ये हमको दिखाएगी क्या
मैं सुन रहा हूँ तू सुना अपना फसाना ज़िंदगी
अपनी कहानी के सभी किस्से सुनाएगी क्या
तू इक इशारा कर ज़रा मैं रोक लूँगा मौत को
इस रात से पहले बता तू लौट आएगी क्या
इन सरहदों ने तो जुदा अब कर रखे है घर कई
हाँ ये नई सरकार सब बिछड़े मिलाएगी क्या
चुपचाप मेरे सामने अब यूँ खड़ी खामोश सी
सच बोल दे ये आज तू भी रूठ जाएगी क्या
जो भी मिला मुझको सबक बन के मिला है अब तलक
तू भी ज़ख़्म देकर मुझे मरहम लगाएगी क्या
सब कुछ गवा कर मैं तुझे अब हूँ मिला इस मोड़ पर
तेरे सिवा कुछ भी नही खुद को चुराएगी क्या
उसने बुलाया है मुझे कुछ बात करने के लिए
सब कह दिया था तब मुझे अब वो बताएगी क्या
नासाज़ है तेरी तबीयत कह रहे थे वैद जी
माँ सच बता अब और तू मुझसे छिपाएगी क्या
सब हार कर आया अमन कुछ जीतना बाकी नहीं
जो जीत कर हारा यहाँ उसको हराएगी क्या।
