दिल का क़सूर!
दिल का क़सूर!


फिर आयी याद,
फिर रोया दिल,
फिर सहमा दिल,
फिर तड़पा दिल,
फिर भी उन्हें,
कुछ नहीं कहता, दिल।
क्या करूँ तेरा ऐ दिल,
जो दिमाग की नहीं सुनता।
क्या करूँ तेरा ऐ दिल,
जो दर्द नहीं बाँटता।
क्या करूँ तेरा ऐ दिल,
जो तूँ इस तन ही से नहीं समहलता।
कुछ तो बता, चाहे दिखा कोई रास्ता।
मिल जाए जिससे दिल को, थोड़ा वासता।
अब तो बस कर और न सता,
बस इतनी सी ही तो थी मेरी ख़ता।
उनके बिन जीने का चुन, लिया जो रास्ता।
मेरी यादों में ही रहने का, है जो उनका वासता।
उनके बिन जुड़ता न अब, किसी से नाता।