माहवारी भाग-2
माहवारी भाग-2
छूत-अछूत बताया सबने,
अपने ही ख़ून से डराया सबने।
पीड़ा है कितनी मुझमें,
इसपे ग़ौर न फ़रमाया किसी ने।
रंग-बिरंगे कपड़ों का भी,
जुड़ा जीवन से हमारे संग है।
है मेहमान बिन,इजाज़त का,
दर्द,आँसुओं के,इबादत का।
स्त्री हूँ मैं डरती हूँ,
जब कभी माहवारी से लड़ती हूँ।
दाग़ अच्छे कहाँ होते हैं ?
जब कपड़े ख़ून से सने होते हैं।