STORYMIRROR

Abhishek Singh

Tragedy

3  

Abhishek Singh

Tragedy

दिल एक खंडहर

दिल एक खंडहर

1 min
237

हम-नशीन अब तो उनकी याद गवारा भी नहीं

एक चेहरा अब हमें पहले सा प्यारा भी नहीं।


सब कहते हैं ये दिललगी भारी पड़ती है

 मैं वो हूँ जो इश्क़ में बेचारा भी नहीं।


ये दिल अब खंडहर में तब्दील हो चुका है 

यहाँ बहुत समय से किसी का बसेरा भी नहीं।


उसके साथ जीने के सपने देखते हो 

अभी तुम्हारे सर पे तो सेहरा भी नहीं।


कल ही से ये दूकान-ए दीद बंद पड़ी है 

मग़र हमारे कारोबार में कोई खसारा भी नहीं।


क्या मिला मूझे अपना ज़मीर-ए हुनर बेचकर 

इस जहांन में उसके बाद गुज़ारा भी नहीं।


वो कोर-चश्म मुझसे कई बेहतर देखते हैं 

जिनके सामने खभी कोई नज़ारा भी नहीं।


हवस का ठिकाना ढूंढ़ना हू मगर वो मेरी दस्तरस में नहीं 

यहाँ जुर्म करने वालों पे तो किसका कोई पहरा भी नहीं।


जले पतंगे को देखके बड़े शौक से कहा तुमने 

कि अभिषेक इश्क़ में ये हाल तुम्हारा भी नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy