दिल और ज़िगर का टुकड़ा दिया है
दिल और ज़िगर का टुकड़ा दिया है
दिल और जिग़र का टुकडा दिया है, तुमको हे, माँ भारती।
अपने लहु का क़तरा दिया है,तुमको है माँ भारती।
माँ:-
मैं जननी हूं, तू जन्मभूमि,तेरा हक मुझसे ज्यादा है।
दूध लजायेगा न माटी, मेरा ये तुमसे वादा है।
मेरे बुढापे का, है ये सहारा,दिल का चैन, सुत आँखों का तारा।
वारिश ही अपना, समर्पित किया है, तुमको ए माँ भारती.....
बहन:-
हर वक्त ये मुझे चिढाया करता है।
पगली-पगली कह बतियाया करता है।
मैं करूं शिकायत जब मां से
याद राखी को दिलाया करता है...
तभी कहती हूं......
राखी की मेरी,है यह कलाई।
रक्षा की माँ, इसने कसमें हैं खाई।
राखी का बंधन ही अर्पित किया है, तुमको है माँ भारती।......
*जीवन संगिनी*:-
घर खाने को आता है, हर वक्त यहाँ तन्हाई है।
नज़दीक दिखे तो लगता है, मेरे सिर पे परछाई है।
तब कहती हूं......
गजरा, सुहाग, मेरी माथे की बिंदिया।
दिन का चैन, मेरी रातों की निंदिया।
जीवन ही अपना समर्पित किया है, तुमको है माँ भारती।
सब मिलकर.....
दिल और जिग़र का टुकडा दिया है,तुमको है माँ भारती।
अपने लहु का क़तरा दिया है, तुमको है माँ भारती।
राखी का बंधन ही अर्पित किया है, तुमको है माँ भारती।
सब कुछ ही अपना समर्पित किया है, तुमको है माँ भारती।
