दिखावा
दिखावा


मन से जो
संग छोड़ चुके हैं
अपने और
पराये लोग
रिश्तों को
भरमाने आये
बेबस और
बेचारे लोग।
हल्दी, कुम-कुम,
मेंहदी, बिछिया,
और सिंदूर
रिश्तों को
भरमाने आये
बेबस और
बेचारे लोग।
मन में 'मैं' हूँ
बाहर 'हम' फिर
रिश्तों का
बाजार लिए
रिश्तों को
भरमाने आये
बेबस और
बेचारे लोग।
कुंठा, कड़वाहट
पर लाचारी
वट वृक्ष तले
जो वृक्ष पले
धूप को फिर
भरमाने निकले
घर में बैठे-बैठे लोग।